अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

आप प्रिक करने से पहले बच्चे की ऊँगली पर बर्फ लगाएं
इंजेक्शन सबक्यूटीनस लेयर में लगाना चाहिए, मांसपेशी में नहीं। ऐसा करने के लिए, खाल को 2 उँगलियों से उठाइए और उसमें इंजेक्शन लगाइए।
दिन में ३-४ बार (नाश्ते, दिन के खाने और रात के खाने से पहले, अर्धरात्रि में ). इसके अलावा जब भी बच्चा बीमार हो या कोई लक्षण जैसे कपकपाना, पसीने आना, चक्कर आना महसूस करे, तब हाइपोग्लाईसीमिया के लिए चेक करें. जब भी ऐसे लक्षण जैसे बार बार पेशाब आना, ज्यादा प्यास लगना, पेट दर्द, मुँह का सुखना, थकान, उलटी हो, तो हाइपरग्लाईसीमिया के लिए चेक करें।
जब भी बच्चे को हाइपोग्लाइसीमिया हो पर कोई लक्षण न हों , तब उसे खाना दें यदि खाने का समय है। यदि खाने का समय नहीं है या बच्चे को लक्षण हों, तब उसे चीनी या ग्लूकोस पानी में घोल कर दें। ऐसे में बच्चे को किसी भी प्रकार की मिठाई/ मीठी चीज़ न दें क्योंकि उसमें फैट भी होता है जो चीनी के असर को धीरे करता है। ख़ास ही इस बात का ध्यान रखें की घर में कोई भी चॉकलेट मिठाई या कोल्ड ड्रिंक्स ना हो, ताकि बच्चा जानबूझकर अपनी शुगर कम करने की कोशिश न करे।
बहुत से माता पिता इस बात की चिंता करते हैं कि कहीं डायबिटीज़ के कारण उनके बच्चे का युवा विकास हो पाएगा या नहीं और वह बच्चे कर पाएँगे या नहीं। सच्चाई यह है कि यदि बच्चे की शुगर सामान्य श्रेणी में रहती है, तो कभी भी ऐसी कोई परेशानी नहीं आएगी। लेकिन अगर बच्चे की शुगर ज्यादा रहती है तो बच्चे का किशोरावस्था विकास होने में देरी हो सकती है।
नहीं। यह बात समझनी और लोगो को बतानी बहुत ज़रूरी है की डायबिटीज़ संक्रामक नहीं होती।
अभी तक टाइप 1 डायबिटीज़ का इलाज नहीं ढूंडा गया है। हांलाकि यह थेरेपी से बहुत अच्छे से मैनेज हो जाती है।
यह सच नहीं है. टाइप १ डाइबीटीज़ एक ऑटो इम्यून बीमारी है जिसमें अपने शरीर का ही रक्षा तंत्र पैंक्रियास पर आक्रमण करता है।
इस्तेमाल करी हुई सुइयों को ऐसे डिब्बे में इकठा करें जिनमें सुई से छेद न हो सकें। आप यह भरे हुए डब्बे अस्पताल में आकर सही जगह फेंक सकते हैं, या अपनी डायबिटीज़ टीम में से किसी को दे सकते हैं जो इसको सही जगह फेंक देंगे। कभी भी सुइयों को कूड़े के थैली या खुले डब्बे में न डाले जिससे किसी को चुभ सकती है।
किसी भी मेडिकल इलाज के नुकसानों को उसके फायदे से तोला जाता है. कुछ परेशानी हो सकती हैं जैसे दर्द, इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर सूजन या नील, हाइपोग्लाइसीमिया और स्किन इरीटेशन। परन्तु जैसे आपके डॉक्टर ने बताया है वैसे ही और उतनी है इन्सुलिन डोज़ लगाना ज़रूरी है। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, इन्सुलिन की डोज़ बढती जाती है।
चाहे आपके बच्चे का गला ख़राब हो या बुखार हो, उसे रोज़ जितनी ही इन्सुलिन लगाएं। ब्लड शुगर की जांच करने के बाद ही इन्सुलिन की डोज़ निर्धारित करके लगाएं।
जब भी बच्चे की शुगर बढ़ी हुई आए, या हाइपरग्लाइसीमिया के लक्षण हों, जैसे उलटी, पेट दर्द, या कीटोन, तब अस्पताल जाएं। यदि बच्चे को हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण हों जैसे चक्कर आना, दौरा आना, बोलने में तकलीफ या बेहोश होना, तब तत्काल अस्पताल लेकर जाएं। यदि आपके बच्चे की उल्टियां और बुखार दवाई से ठीक नहीं हो रहा है, तब भी अस्पताल लेकर जाएं। यदि आपको लग रहा है की बच्चे की तबियत ख़राब होती जा रही है और आपसे घर पर मैनेज नहीं हो रहा है, तब भी डॉक्टर की सलाह लें या अस्पताल लेकर जाएं।